Friday 26 February 2010

हुसैन, तुम माफी मत मांगना

GUEST BLOG BY- PRABHAT SHUNGLU

मकबूल फ़िदा हुसैन को कतर की नागरिकता दिये जाने पर एक बार फिर से उन्हे खोने का ऐहसास हो रहा। लेकिन राजनीति की बिसात पर हुसैन बस मोहरा बन कर रह जाते हैं। आज सेक्यूलरिज़म की दुहाई देने वाले चुप हैं। ये वही लोग हैं जिन्होने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को सरकारी दस्तावेजों के विशाल डम्पिंग ग्राउंड में दफ्न कर दिया है। ये हिम्मत कौन दिखाएगा कि उस रिपोर्ट को बाहर निकाल कर, उसे झाड़ पोंछ कर उसपर सिरे से अमल किया जाए। हुसैन से अलग जस्टिस सच्चर ने जो देश की अक़लियत के विकास का एक्स-रे निकाला उसमें देश की सेक्यूलर छवि तार-तार दिखी।
सेक्यूलरवाद की दुहाई देने वाला ये समाज अक्सर कट्टरवादी हो-हल्ला करने वालों के सामने घुटने टेकता देखा गया। सरकारी तंत्र भी नपुंसक बन जाता है। यदि ऐसा न होता तो हुसैन को दुबई जाकर न बसना पड़ता। महाराष्ट्र के पंढरपुर की धरती पर वो दोबारा लौटते जहां उन्होने जन्म लिया था। लेकिन महाराष्ट्र की धरती को तो मातोश्री विचारधारा वाले बिगड़ैल शिवसैनिक सींच रहे हैं। बाकी जगहों पर हुसैन के खिलाफ बजरंगियों ने मोर्चा खोला हुआ था। हम उन जैसे कुंठित विचारधारा के लोगों को भी सह रहे हैं। हमने उनके सामने भी घुटने टेके, हम तो उनसे भी डर गए जो ये बता रहे थे कि किताब धर्म और मज़हब का मज़ाक उड़ा रही। इसलिये हमने वो किताब बिना पढ़े ही बैन कर दी। फिर तस्लीमा नसरीन के वीज़ा की मियाद इसलिये नहीं बढ़ाई कि वो और ज्यादा रहीं तो एक वोट देने वाला एक तबका नाखुश हो जाएगा। पश्चिम बंगाल की सीपीएम सरकार ने तो उन्हे राज्य से ही तड़ीपार का हुक्म दे दिया। हमने प्रूव कर दिया कि हम पूरी तरह से सेक्यूलर हैं - हुसैन को दुबई भेजकर, तस्लीमा को तड़ीपार कर और सलमान रूश्दी की किताब पर प्रतिबंध लगाकर। लेकिन यही हमारे सेक्यूलरिज्म का दोमुंहापन है, यही हमारी तमाम सरकारों का दोमुंहापन है और यही दोमुंहापन हमारे समाज में भी व्याप्त है।
चीन में सरकारी आतताइयों के खिलाफ वहां का युवा वर्ग जब खड़ा हुआ तो तिआनन मेन चौराहे की तस्वीरों नें दुनिया को हौसला दिया कि आवाज़ दबाए नहीं दबाई जा सकती। लेकिन हमारी भारतीय परंपरा में न जाने कब ये वाइरस घर कर गया कि जो हो रहा उसे होने दो। बदलने की कोशिश मत करो। यही कारण था कि इमरजेंसी के दौरान कुछ आवाज़े तो दबा दी गईं और कुछ खुद ही शांत पड़ गईं। जो शांत पड़ गये वो इंदिरा के उस रौद्र रूप के कायल हो गए और उनकी शान में कसीदे भी गढ़े। वो भी उसी तरह की एक्सट्रीम विचारधारा थी जो मकबूल फिदा हुसैन को वतन छोड़ने के लिये मजबूर कर देती है। हम अतिवाद को लेकर सहनशील होते जा रहे जबकि तरक्की की राह पर चलने से पहले अतिवाद का त्याग पहली शर्त होनी चाहिये थी।
जब 2004 में यूपीए गठबंधन बना तो इस गठबंधन में देश की तमाम छोटी बड़ी पार्टियां जुड़ी। कश्मीर से चेन्नई तक। असम से आंध्र तक। तमाम पार्टियों ने मिलकर हुकूमत करने का प्लान बनाया। लेकिन जो गठबंधन सेक्यूलरिज्म और विकास के मुद्दे पर सत्ता पर काबिज हुआ उसने भी हुसैन को भारत वापस लाने के लिए कुछ नहीं किया। बल्कि उसी के शासन काल में ही हुसैन को कट्टरपंथी हिंदु संगठनों की धमकियों के चलते हिंदुस्तान छोड़ना पड़ा। इन कट्टरपंथी संगठनों नें हुसैन पर हिंदु देवी-देवताओं की मर्यादा के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए देश भर की विभिन्न अदालतों में मुकद्दमें ठोंक दिये। लेकिन बात सिर्फ अदालत तक रूकती तब भी ठीक था। हुसैन को धमकियां मिलने लगीं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। हुसैन को शायद सरकार का ये छद्म सेक्यूलरवाद रास नहीं आया और इसलिये उन्हे वतन छोड़ने का कड़ा फैसला लेना पड़ा। सेक्यूलरिज़्म के नाम पर सॉफ्ट हिंदुत्व का मुखौटा ओढ़ने का आरोप कांग्रेस पर हमेशा लगता आया है। ये एक ऐसा आरोप है जो कांग्रेस पार्टी ने सत कर लिया है। इसलिये इसको लेकर उसकी संवेदनशीलता सुन्न हो चुकी है।
आज जब कतर की राजशाही ने 95-वर्षीय हुसैन को कतर की नागरिकता बतौर तोहफा भेंट की है तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये। उन्होने कतर की नागरिकता के लिये एप्लाई नहीं किया था। वैसे भी हुसैन पिछले चार साल से हिंदुस्तान के रेसीडेंट होते हुए भी नॉन-रेसीडेंट इंडियन की ज़िदगी बसर कर ही रहे थे। लक्ष्मी निवास मित्तल और लॉर्ड स्वराज पॉल की तरह अब वो किसी भी देश के नागरिक बनें हमें क्या। एक भारतीय अंग्रेज़ी दैनिक के संपादक को भेजे एक छोटे से संदेश में उन्होने अपने नाम के आगे 'द इंडियन ओरिजन पेंटर' लिखा है और कहा है कि इस भेंट से उनका मान बढ़ा है। इन दिनों हुसैन भारतीय सभ्यता और अरब सभ्यता के थीम पर अपने दो अभिन्न प्रोजेक्ट में जुटे हैं। भारतीय सभ्यता पर नई पेंटिग्स का प्रोजेक्ट हुसैन को विदेशी धरती पर रहकर पूरा करना पड़ रहा सेक्यूलरिज़म और सहिषुणता पर इससे बड़ा मज़ाक क्या होगा।
चीन के ह्वेन त्सांग, मोरोक्को के इब्न बतूता और आज के उज़बेकिस्तान के अल-बरूनी से ही हमें भारतीय समाज और उस समय के इतिहास के सुनहरे पन्नों को पढ़ने का मौका मिला। इंडियन ओरिजन के कतरी नागरिकता वाले मकबूल फ़िदा हुसैन
अब एक विदेशी कूचे से हिंदुस्तान और पंढरपुर का इतिहास रंगेंगे। उनके इस प्रोजेक्ट में मां सरस्वती पल पल उनके साथ हो, मां दुर्गा उनके साहस में और इज़ाफा लाए और भगवान विठ्ठल पंढरपुर के पाट खोलकर खुद उनपर स्नेह बरसायें ये हर उस हिंदुस्तानी की कामना है जिसे जात-पात, प्रांतवाद और मज़हब के खांचे में रखकर उसे बांटने की चौतरफा साजिश रची जा रही है। लेकिन वो डटा हुआ है और घुटने नहीं टेकना चाहता। आज भी हुसैन के वापस लौटने की शर्त लगाई जा रही कि माफी मांग लें और वतन लौट आएं। हुसैन साहब, आप भले ही हिंदुस्तान न लौटें पर धर्म के इन ठेकेदारों से कतई माफी मत मांगिएगा। भारतीय सभ्यता की यही पहचान है।
(लेखक IBN7 में एडिटर स्पेशल एसाइनमेंट हैं उनसे prabhatshunglu@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )

3 comments:

Anonymous said...

Hussain to Mafi Mangne se rahe. Aap hi Kyon nahi mafi Maang lete hain unki traf se.

Mithilesh dubey said...

समझ नहीं आता कि आप जैसे लोग हुसैन का समर्थन कैसे कर सकते हैं , पता नहीं कि आप उसके बारे में क्या सोचते है कि उसका समर्थन करते है, उसे उस देश में रहने के कोई हक ही नहीं जहाँ वह कला के नाम पर कला को गाली दे रहा था और किसी विशेष समुदाय के साथ खिलवाड़ कर रहा था , मुझे तो समझ नहीं आता कि वह अब तक जिंदा कैसे है ।

Samir Abbas said...

I think MF Husain is doing fine with accepting Qatar citizenship .Y shouldn't he?If he can't realise wat he did.m nt supporting the orthodox hindu organ, jus wanna say that he should realise dat he did smthng wrong. There is no harm in it, bt the only matter is realisation. he should respect d feelings of the ppl of In...dia, the country which gave him evrythng. frns i've seen those pictures thats y i felt so. There shuld be a freedom of expression but there is a old saying - ''aapki swatantrta vahan khatm hoti hai jahan meri naak shuru hoti hai'' n in this case Husain had crossed the limit. he has hit the faith of millions. on the other part the organ lk RSS , i blv they dont hv ne faith in our constitution. so there is nothing new frm their part