Saturday 16 March 2019

नफ़रत की पार्टी तो कबसे शुरू है - समीर अब्बास

आख़िर उसने इतनी निर्ममता से 50 लोगों की जान क्यों ले ली ? ये वो बड़ा सवाल है जो हमको आपको और दुनिया भर में रहने वाले हमारे जैसे करोड़ों अरबों लोगों को आज परेशान कर रहा है।


न्यूज़ीलैंड में जो कुछ हुआ वो दहलाने वाला तो है ही..बहुत कुछ सोचने और समझने वाला भी है.
28 साल का एक नौजवान ब्रेंटन टैरेंट हाथों में एक अत्याधुनिक राइफ़ल लेकर सिर पर लगे कैमरे से फेसबुक लाइव करते हुए एक के बाद एक लोगों को मौत के घाट उतार देता है. इस खूंख़ार कारनामे को अंजाम देने के लिए वो जिस जगह का चुनाव करता है वो है ख़ुदा का घर एक मस्जिद..जहां भारी तादाद में लोग खु़दा की दी गई नेमतों का शुक्रिया अदा करने के लिए पहुंचते हैं…जिसे हम और आप नमाज़ के नाम से जानते हैं.
आख़िर नमाज़ पढ़ने वाले इन बेक़ूसूर मज़हबी नमाज़ियों से इस शख्स की क्या परेशानी हो सकती है…और अगर कोई परेशानी थी नहीं तो आख़िर उसने इतनी निर्ममता से 50 लोगों की जान क्यों ले ली? ये वो बड़ा सवाल है जो हमको आपको और दुनिया भर में रहने वाले हमारे जैसे करोड़ों अरबों लोगों को आज परेशान कर रहा है. और इस परेशानी भरे सवाल का जवाब एक ही है – नफ़रत, ये नफ़रत ही है जो इंसान को शैतान बना सकती है.


ज़रा ब्रेंटन टैरेंट के इस आतंकवादी हमले के तरीके पर गौर कीजिए, वो एक रात पहले फेसबुक पर पूरी दुनिया के सामने इस बात का ऐलान करता है कि वो आक्रमणकारियों पर हमला करेगा और उसे सोशल मीडिया साइट पर लाइव दिखाएगा. औऱ फिर वो ऐसा कर भी देता है ये कहते हुए कि अभी तो पार्टी शुरू हुई है. यहां दो बातें सामने निकल कर आती हैं कि एक तो नफरत ने उसे इतना अंधा कर दिया कि उसके सोचने समझने की सलाहियत ही खत्म हो गई और उसे न्यूजीलैंड में बसे सारे मुसलमान अचानक आक्रमणकारी नज़र आने लगे और दूसरा ये कि इस नफ़रत ने उसके अंदर का ये डर भी खत्म कर दिया कि इतने बड़े हमले को अंजाम देने के बाद या तो पुलिस की गोली से वो खु़द मारा जाएगा या फिर कानून उसको सजा ए मौत दे देगा.
ये ठीक वैसा ही है जैसे कुरान में लिखे कुफ़्र और जिहाद जैसे अल्फ़ाज़ों की गलत व्याख्या करके कुछ मुसलमानों को मानव बम बनने या किसी जगह ब्लास्ट करने के लिए राज़ी कर लिया जाता है और वो अपनी जान की परवाह किए बग़ैर, इंसानियत के सबसे बड़े दुश्मन बनने को राज़ी हो जाते हैं, ये सोचे बग़ैर कि इस्लाम सबसे पहले ये सीख देता है कि एक इंसान का कत्ल पूरी इंसानियत के क़त्ल के बराबर है और इस गुनाह की कोई माफ़ी दीन के हिसाब से भी मुमकिन नहीं है. कहने का मतलब ये कि इस तरह के आतंकी हमले को अंजाम देने वाला भले ही किसी भी मज़हब से ताल्लुक रखता हो आप उसके भटके हुए शैतानी दिमाग़ की पड़ताल करेंगे तो आपको सिर्फ एक ही भावना नज़र आएगी – नफ़रत.
ब्रिटिश अख़बार द सन के मुताबिक हमलावर ख़ुद को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को गोरों की नई पहचान बताते हुए उनका फैन बताता है, बताने की जरूरत नहीं कि ऐसा अमेरिका में मुसलमानों को लेकर दिए गए ट्रंप के सख्त बयानों की वजह से हुआ होगा. इस ऑस्ट्रेलियाई आतंकी टैरेंट को भी व्हाइट सुप्रीमेसी की सनक है वो अपने फेसबुक पर जारी किए चार्टर में आतंकी हमलों में यूरोपीय नागरिकों की जान का बदला लेने की बात कहता है और वहां रह रहे अप्रवासियों को बाहर निकालकर गोरों का राज स्थापित करने की बात करता है वो कहता है कि “अटैक करने वालों को दिखाना है कि हमारी भूमि कभी उनकी नहीं हो सकती. जब तक एक भी गोरा व्यक्ति रहेगा, वो कभी जीत नहीं पाएंगे.”
अपनी पोस्ट में वो ये कहते हुए ख़ुद को जस्टीफ़ाई करने की कोशिश भी करता है कि उसके किसी दोस्त को किस तरह एक मुस्लिम आतंकी ने हमले में मार डाला पर वो ये समझ ही नहीं पा रहा कि इसकी आड़ में अब वो भी इंसानियत का उसी तरह कत्ल करने जा रहा है जो उस मुस्लिम आतंकी ने किया होगा..और वो भी उसी तरह मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे उन तमाम नमाजियों और उनके परिवार वालों को वही दर्द देने जा रहा है जो आंतकी हमले में मारे गए उसके दोस्त और उसके परिवारवालों ने सहा होगा.
भारत में क्या है ख़तरा?
न्यूज़ीलैंड की ये घटना ये साबित करने के लिए भी काफ़ी है कि दहशतगर्दी का कोई मज़हब नहीं होता और आतंकी सिर्फ आतंकी होता है. क्योंकि अब तक आप ये तो समझ ही गए होंगे कि किसी भी आतंकी हमले में किस धर्म का नागरिक शामिल था या किस धर्म के मानने वाले ने किस धर्म के मानने वालों पर अटैक किया ये मायने नहीं रखता मायने बस ये रखता है कि किसके ज़ेहन में किसके लिए कितनी नफ़रत भरी गई और किसे किस धर्म के लोगों के खिलाफ़ कितना भड़काया गया. हम सब ये उम्मीद करते हैं कि हमारे मुल्क में इस तरह की नफरत को कभी जगह न मिली है न मिलेगी और यही वजह है कि हिंदुस्तानी सरज़मीं इस तरह की नफ़रत भरी सोच वाले दहशतगर्दों के लिए कभी उपजाऊ नहीं रही न रहेगी. पर ये कहना भी गलत नहीं होगा कि नफ़रत की पार्टी तो यहां भी कबसे शुरू है…जिस तरह का ज़हर ध्रुवीकरण की चाहत में अपनी सियासत चमकाने की खा़तिर कुछ सियासतदां फैलाते हैं उसके चलते ये ख़तरा जरूर बना हुआ है कि किसके ज़ेहन में किसके लिए कितनी नफरत भर दी जाए.
मेरा ये मानना है कि चाहे एक्सट्रीम लेफ़्ट विचार हों या एक्सट्रीम राइट..अतिवाद कैसा भी हो उसकी बुनियाद यही नफ़रत ही होती है औऱ इसलिए ये किसी भी लिहाज़ से हमारे समाज के लिए बेहतर नहीं है. हद तो ये है कि इस ताज़ा हमले के बाद भी कुछ नेताओं ने ये सवाल उठा दिए कि क्यूंकि हमलावर क्रिश्चियन है इसलिए उदार लोग आज के अटैक की तो चर्चा कर रहे हैं पर इससे पहले इस्लाम के नाम पर हुए हज़ारों आतंकवादी हमलों में ऐसा नहीं किया गया. मेरे हिसाब से इससे बड़ा अपराध और कोई नहीं हो सकता, हर हमले के बाद आतंकी का मज़हब ढूंढने और उसके मज़हब से जुड़े लोगों को टारगेट करने की सोच रखने वाले जान लें कि ऐसा करके वो जाने अनजाने उसी नफ़रत को बढ़ावा दे रहे हैं जो इंसानियत को तार तार करने की सबसे बड़ी जि़म्मेदार है.
ब्रेंटन टैरेंट के शैतानी दिमाग़ में मुसलमानों के प्रति भरी नफ़रत ही थी जिससे न्यूज़ीलैंड की दो मस्जिदों के नमाज़ी अपनी जान नहीं बचा पाए लेकिन उन तमाम दिलों में भरी नफ़रत को ख़त्म करके उस इंसानियत को जरूर जिंदा रखा जा सकता है जिसके तलबगार और हक़दार हम और आप सभी हैं. इसलिए अगर हमें अपने मुल्क से प्यार है तो हमें बस इस देश में एक दूसरे के खिलाफ़ पनप रही इसी नफ़रत पर वार करना है इससे पहले कि ये हम पर वार कर हमें खत्म कर दे. और याद रखिएगा ये वार इंसानियत….अमन और मुहब्बत के…रास्ते पर चलते हुए ही मुमकिन है..आमीन…!

समीर अब्बास, एक्जीक्यूटिव एडिटर, टीवी 9 भारतवर्ष