Sunday 17 October 2010

कलमाडी के पीछे कौन ?

कॉमनवेल्थ खेल तो खैर खूबी से खत्म हो गए, अच्छे खासे मेडल्स भी भारत की झोली में आ गए। दुनिया की नजरों में भारत खेलों का नया सुपर पावर बनकर उभरा और मेलबर्न से दिल्ली पहुंचते पहुंचते हमने अपने खेलों का स्तर इतना सुधार लिया किया कि हम चौथे से दूसरे पायदान पर सीना तान कर खड़े हो गए। एक अच्छी बात और हुई कि कम से कम कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान कोई ऐसा हादसा नहीं हुआ जिससे देश की इज्जत पर बट्टा लगता और महाखेलों में महाभ्रष्टाचार की पोल खुल जाती। इंद्र देवता मेहरबान रहे और सालों की जगह महीनों में निपटने वाले काम की असलियत खोल के अंदर ही रह गई।

लेकिन क्या यहीं सारा खेल खत्म हो जाता है, नहीं मेरे हिसाब से असली खेल या कह लीजिए खेल के पीछे का खेल तो अब शुरू हुआ है। आयोजन समिति के अध्यक्ष की हैसियत से कलमाडी ने जो गुल खिलाएं हैं क्या वो उनका पीछे छोड़ देंगे। क्या खैर खूबी से खेल का आयोजन करा लेने भर से उनके सारे पाप धुल जाएंगे, क्या देश की जनता उन्हें माफ कर देगी। इन सारे सवालों का जवाब है शायद नहीं। लेकिन एक औऱ अहम सवाल का जवाब है शायद नहीं औऱ वो सवाल है कि क्या सिर्फ अपने बलबूते कलमाडी ने वो तमाम गुल खिला दिए जिससे उनकी तो क्या उनकी सात पुश्तों को भी एक धेला कमाने की जरूरत न पड़े । जी हां शायद नहीं ।

भला ऐसा कैसै हो सकता है कि देश की नाक के नीचे एक कांग्रेस सांसद और आईओसी अध्यक्ष जिसके ऊपर कॉमनवेल्थ कराने की अहम जिम्मेदारी सौंपी जाती है , वो इस आड़ में केंद्र और दिल्ली की कांग्रेस की सरकार के होते वो कर डालता है जिससे देश की जनता खुद को छला महसूस करने लगती है औऱ देश की साख दांव पर लग जाती है। कैसे 5 करोड़ का काम 50 करोड़ में कराया गया और देश की शान के नाम पर हजारों करोड़ के वारे न्यारे कर दिए गए। नहीं , मै नही मानता कि एक अकेला आदमी महाखेलों में ऐसे महाभ्रष्टाचार की हिम्मत कर सकता है। जाहिर है सिर्फ दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कलमाडी एंड कंपनी के बॉयकॉट कर देने भर से उनका दामन पाक साफ नहीं हो जाता। उन्हें देश की जनता को ये भरोसा दिलाना होगा कि इस महालूट में उनका कोई योगदान नहीं था , क्योंकि तब तक ये शंका हर भारतीय के दिलोदिमाग में जिंदा रहेगी....और वो ये सवाल पूछता रहेगा कि कलमाडी ने जो किया सो किया पर कलमाडी के पीछे कौन ?