Friday 6 December 2013

क्या इतने भर से ही वो महान नहीं हो जाता ???

एक ऐसा नेता जो दिखता बिल्कुकुल आम आदमी है प्रबुद्ध वर्ग से आता है, IIT से पास आउट है, IRS अफसर रह चुका है ,जिसने पूरी बहादुरी के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर हुक्मरानों को दहला दिया, लोगों में उम्मीद जगाई। हजारों करोड़ पानी में बहाने वाली पार्टियों को बतला दिया कि व्हाइट मनी से चुनाव कैसे लड़ा जाता है , सालों से पैर जमाए बैठी बड़ी बड़ी पार्टियों को जतला दिया कि संगठन कैसे खड़ा किया जाता है। वो हारे या जीते, क्या इतनी कामयाबी ही किसी शख्स को महान नहीं बना देती ? क्या बस इतनी कामयाबी के बाद ही हिंदुस्तान की राजनीति का इतिहास बिना उसका नाम लिए लिखा जा सकेगा ?

Sunday 17 March 2013

IBN7 के समीर अब्बास को मिला 'बेस्ट न्यूज एंकर' अवॉर्ड


नई दिल्ली। दिल्ली के फिक्की ऑडिटोरियम में आईबीएन7 के प्राइम टाइम एंकर समीर अब्बास को साल 2013 के सर्वश्रेष्ठ न्यूज एंकर के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। ये सम्मान मीडिया फेडरेशन ऑफ इंडिया की तरफ से दिया गया।
फेडरेशन हर साल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सबसे बेहतर काम करने वाले पत्रकारों को मीडिया एक्सीलेंस अवॉर्ड से सम्मानित करता है। आईबीएन7 के असोसिएट एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर समीर अब्बास पिछले 8 सालों से चैनल के लिए काम कर रहे हैं। वो लाइव न्यूज बुलेटिनों के साथ-साथ कई स्पेशल प्रोग्राम की एंकरिंग कर चुके हैं और आपने आक्रामक और तेज तर्रार अंदाज के लिए जाने जाते हैं।

Thursday 14 March 2013

16 में सेक्स पर हंगामा क्यों ?


सहमति से सेक्स की उम्र 18 से घटाकर 16 करने पर कैबिनेट ने रजामंदी क्या दी बवाल मच गया । वैसे भी पिछले कुछ दिनों से हर गली नुक्कड़ और सरकारी दफ्तरों से लेकर चैनलों के न्यूजरूम तक यही चर्चा का सबसे बड़ा विषय है। ज्यादातर लोग नाक भौं सिकोड़कर भारतीय संस्कृति का रोना रो रहे हैं कि अब तो इस देश को सामाजिक बर्बादी से कोई बचा नहीं सकता । लोगों का तर्क ये भी है कि अगर 16 की उम्र में युवाओं को सेक्स करने की कानूनी इजाजत मिल जाएगी तो संदेश ये जाएगा कि इस देश में शादी से पहले सेक्स की खुली छूट है। या फिर शादी के लिए लड़की की उम्र 18 और लड़के की उम्र 21 के सारे तानेबाने का फिर क्या मतलब। हद तो तब हो जाती है जब कमोबेश सारे न्यूज चैनल भी चर्चा इस बात की शुरू कर देते हैं कि 16 की उम्र में क्या सही है सेक्स, अरे जनाब ये तो मुद्दा ही नहीं है।  

दिलो दिमाग में ऐसे तर्क गढ़ते हुए शायद हम ये भूल जाते हैं कि नैतिकता और सांस्कृतिक विरासत का लबादा ओढ़े हमारे इस समाज में हमारी आपकी नजरों से बच बचाकर क्या हो रहा है। आज की तारीख में जब सहमति से सेक्स की उम्र सीमा 18 साल तय है तब भी 15-16 साल के लड़के लड़कियां सहमति से सेक्स संबंध बना रहे हैं, और अगर आपको ये लगता है कि ऐसा सिर्फ दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में ही हो रहा है तो यकीन मानिए आप सरासर गलत हैं। हां अभी का मौजूदा सिस्टम हमें वो समाज जरूर दे रहा है जिसमें लड़के जवानी की दहलीज पर आने से पहले ही बलात्कारी होने के के ठप्पे और शर्म के साथ जिंदगी बिताने को मजबूर हो जाते हैं। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने किसी से प्यार किया और एक खास पल में अपने जज्बातों पर काबू नहीं रख सके और गर्लफ्रेंड के साथ उसकी मर्जी से शारीरिक संबंध बना लिया । भले ही आप कम उम्र के इस प्यार को नादान कह कर उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाएं लेकिन क्या हममें से कोई भी ये गवारा कर सकता है कि सिर्फ इस नादानी के लिए किसी लड़के पर हमेशा हमेशा के लिए बलात्कारी होने का ठप्पा लग जाए पर अफसोस अबतक ये हो रहा है। आखिर ये क्या अजब कानून है जो 16 साल की लड़की के पुलिस थाने में आकर रजामंदी से लड़के के साथ सेक्स करने की बात कबूल करने के बावजूद उसके साथी लड़के के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज करने की इजाजत देता है। 

अगर आप समझ रहे हैं कि इस तरह के केसेज इक्का दुक्के ही सुनने में मिलते हैं तो भी अपने विचार बदल लें। पुलिस का कोई भी आला अधिकारी आपको बता देगा कि हर साल इसी तरह कैसे सैकड़ों नौजवानों की जिंदगी शुरू होने से पहले ही उजड़ जाती है। जाहिर है टीन एज में हुए प्यार या कह लीजिए शारीरिक आकर्षण को रोक पाना मां बाप के लिए आसान नहीं होता ये हम सब जानते हैं , आज क्या किसी भी जमाने में ये आसान नहीं रहा । लिहाजा अगर आज की तारीख में जब बच्चे वक्त से कहीं पहले जवान हो रहे हैं  जब दुनिया भर में सहमति से सेक्स की उम्र सीमा औसतन 16 साल है तो भारत में ऐसा होने पर हमें हाय तौबा मचाने के बजाय , सरकार के इस फैसले का भरपूर स्वागत करना चाहिए।  हां इतना जरूर है कि एंटी रेप बिल में किसी लड़की को घूरना , उसका पीछा करना जैसे अपराधों को गैरजमानती धाराओं में डालने का प्रावधान कर सरकार ने इस कानून के दुरूपयोग की प्रबल संभावना पैदा कर दी है जिससे निपटना आने वाले वक्त में पुलिस प्रशासन के लिए गंभीर समस्या जरूर पैदा कर सकता है । पर शायद महिलाओं के लिए बेहद असुरक्षित होते इस समाज में उन्हें हिफाजत का अहसास कराने के लिए मर्दों को इतनी कुर्बानी देनी ही पड़ेगी ।  

Monday 14 January 2013

जंग की राजनीति

दो मुंडी के बदले दस मुंडी, उन्होंने दो किए हम दस सिर कलम करेंगे। ये किसी तालिबानी नेता का नहीं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुख्य विपक्षी दल के नेताओं का ऐसा बड़बोलापन है जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। ऐसा लग रहा है जैसे बड़े नेता नहीं कक्षा 6 या 7 में पढ़ने वाला कोई झगड़ालू लड़का देश की बड़ी समस्या पर अपनी राय देश के सामने रख रहा हो। समझ में ये नहीं आता कि हमारे नेता ऐसे मुश्किल और संवेदनशील दौर में ऐसे असंवेदनशील और गैरजिम्मेदार बयान भला कैसे दे सकते हैं

हैरत उस वक्त और भी ज्यादा होती है जब देश के कुछ नंबर वन कहे जाने वाले अंग्रेजी दां चैनलों के बेहद सभ्य माने जाने वाले अंग्रेजी पत्रकार अपने प्रोफेशन की मर्यादा लांघते हुए ऐसी उत्तेजना में एंकरिंग नहीं बल्कि भाषणबाजी करने लगते हैं जैसे कल ही दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ने वाला हो और हालात इतने बदतर हो गए हों कि अब बस एक दूसरे को मरने मारने के अलावा , कोई रास्ता न बचा हो।

जाहिर है हमारे जांबाज सैनिकों के शवों पर अपनी नामर्दी के सबूत छोड़कर पाकिस्तान ने एक बेहद क्रूर , बर्बर और नाकाबिले बर्दाशत कदम उठाया है , एक बड़ी हिमाकत की है लेकिन आज इस हिमाकत का इमोशनली नहीं डिप्लोमैटिकली जवाब देने का वक्त है। भावनाओं के ज्वार को ठंडा रखते हुए,  दोनों ओर के बेकसूर जवानों की कीमती जानों को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिए जाने की जरूरत है जिसमें हमारे जनरल बहुत हद तक कामयाब रहे हैं।

उम्मीद की जानी चाहिए की पड़ोसी मुल्क के खिलाफ देश के लोगों में नफरत भरने या शहीद के घरवालों से मिलकर दूसरे दलों के नेताओं पर कीचड़ उछालने की राजनीति बंद होगी और देश के नेता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएंगे और सरकार भी विपक्ष को भरोसे में लेकर सख्त ही नहीं एक ठोस मैसेद देगी।