Monday 31 December 2012

देश की बेटी के पिता का दर्द




मेरी बेटी, मेरी आंखों का नूर थी

वो मीठे गाने गाने वाली एक चिड़िया थी

मेरी बेटी के रहने से घर में उजाला था, खुशी थी, जीने की इच्छा थी -

लेकिन मेरी बेटी के अंधेरे में गुम होते ही जिंदगी रूठ गई

चाह कर भी मेरी बेटी तुम नजर न आओगी, तुम्हारी खनखनाती आवाज सुनाई नहीं पड़ेगी

लेकिन तुम्हारे बचपन की किलकारी मुझसे कोई छीन नहीं पाएगा

तुम्हारी निर्दोष मुस्कुराहट मेरी आंखों में सदा जिंदा रहेगी

लेकिन बिटिया माफ करना, अब तक घर में तुम्हारी तस्वीर लगा नहीं सका, तुम्हारे अक्स पर फूलों की माला बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा

तुम नहीं हो, फिर भी हर जगह हो, तुम्हारे कपड़े, किताबें सब जस के तस रखे हैं, जैसे हममे से कोई तुम्हें छेड़ना नहीं चाहता

मेरी बेटी, मेरी आंखों का नूर थी

तुम्हाई पढ़ाई ही तो मेरी पूंजी थी

नौकरी की कमाई कम थी, लेकिन मेरी बिटिया की आंखों के सपने बड़े थे, मैंने पुरखों की जमीन बेची, एक कमरे के मकान में तुम्हें पाला, छोटे शहर से आए हम सबों के दिल जो बड़े थे - किताबों से तुम्हारी आंखें चमक उठतीं और उस चमक से मुझे प्यार था, तुम क्लास की टॉपर बनी और मेरे अरमानों को पंख लग गए


लेकिन मेरी बिटिया ये अचानक क्या हो गया -

दौड़ती भागती मेरे चिड़िया अचानक किस जाल में फंस गई - तुम्हारे नर्म मन को कैसे रौंद डाला गया -

जिस बच्ची को गोद में खिलाया उसी को वहशी बलात्कारियों का शिकार बनने के बाद देखते हुए गला रुंध आता - लेकिन तुम्हारे सामने तो रो भी नहीं सकता था -


मेरी बेटी - मेरी आंखों में अंगार भर जाते हैं जब-जब मैं तुम्हें देखता - अस्पताल के बिस्तर पर मशीनों के बीच उदास मुस्कुराहट के बीच  - वो एक पल कैसे भूलूंगा - तुम्हारी आवाज अंतिम बार जब सुनी थी, तुम्हारा अंतिम आंसू जब तुम्हारे गालों पर ढलकते हुए देख पाया था - और तुमने हल्की आवाज में कहा था -

आप सो जाओ - मैं भी अब सोऊंगी, ये कहकर तुमने मेरा हाथ को जैसे गले लगा लिया और तुम्हारी आंखें मुंद गईँ - और एक आंसू चांदी की लकीर सा तुम्हारी आंखों से ढलक कर नीचे गिर गया -

उसके बाद तुम कभी नहीं जगी - अपने संघर्ष में अकेली लड़ी -
जिस बच्ची की डोली उठाता - उसकी चिता को अग्नि दे चुका हूं - मैं कठोर हो चुका हूं मेरी बेटी - मैं बदल चुका हूं बेटी -

लेकिन मैं एक वादा करता हूं - ये आग मैं जला कर रखूंगा, तूफान आए, बारिश हो या जलजला -

ये आग मेरे भीतर ही नहीं देश के कोने कोने तक जलेगी,
तुम्हारी अस्थियां अब इस धरती में मिल चुकी हैं लेकिन
तुम मिट्टी में बदलाव का फूल बनकर जैसे दोबारा जन्म लोगी

वही नूर दोबारा इस दुनिया पर बरसेगा
नूर - बदलाव का - औरतों के प्रति सम्मान का -
इस देश में जननी का सम्मान होगा
एक दिन जरूर
तुम लौटोगी मेरी बेटी, तुम लौटोगी...

(दिल्ली गैंगरेप पीड़ित के पिता के दर्द को समेटती IBN7 के सीनीयर ईपी अनुराग सिंह की कलम से निकलीं कुछ शानदार लाइनें जो किसी का भी कलेजा कंपा दें)