संडे को फनडे कहा जाता है आमतौर पर इस दिन लोगों की छुट्टियां होती हैं...पर मैं उन खुशनसीबों में से नहीं..बहरहाल इस रोने धोने का तो कभी अंत होगा नहीं...सो आगे बढ़ते हैं । मन मार कर घर से निकला और ऑफिस पहुंचते ही एक खौफनाक खबर मिली किंगफिशर एअरलाइंस में बम की । खुदा का लाख लाख शुक्र था कि थोड़ी देर में ही ये साफ हो गया कि बम को डिफ्यूज कर दिया गया है और सभी यात्री बाल बाल बच गए पर बार बार जेहन में ये ख्याल आ रहा था कि आज क्या हो सकता था, फिर सोचा कि आतंकवादी चाहे जितनी धमकी दे लें हम नहीं बदलेंगे , आंतकवाद हमारा चाहे जितना कुछ बिगाड़ लें हम नहीं बदलेंगे। ये जानते हुए भी कि मौजूदा दौर के आंतकवाद में सबसे बड़ा खतरा हवाई सुरक्षा को है हम नहीं बदलेंगे । अगर ऐसा न होता तो अखबार में लिपटा एक देसी बम तिरूअनंतपुरम से 753 किलोमीटर की हवाई यात्रा करता हुआ बैंगलोर न पहुंच जाता । प्लेन में बम रखने की साजिश किसकी थी...क्या ये किसी आतंकी संगठन का काम था...या फिर किसी सिरफिरे की करतूत ये तमाम सवाल फिलहाल बेमानी हैं । सबसे बड़ा सवाल फिलहाल यही है कि हम कब सुधरेंगे ?
देश के लिए नासूर बन चुके देसी विदेशी आतंकियों की हवाई हमले की धंमकी और देश भर के सारे एअरपोर्ट को अलर्ट पर रखने के बाद भी न तो कुकुरमुत्ते की तरह उग आईं प्राइवेट एअरलाइंस के सेक्योरिटी स्टाफ के रवैये में कोई बदलाव आया है और न ही देश भर में एअरपोर्ट की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले सीआईएसएफ के जवान ही चौकन्ना हुए हैं । जरा सोचिए हवा में जमीन से हजारों फीट ऊपर अगर ये बम फट जाता तो क्या होता ... सोच कर भी मेरी रूह कांप उठती है तो इस विमान से तिरूअनंतपुरम से बैंगलोर तक का सफर तय करने वालों पर क्या गुजरी होगी जब उन्हें पता चला होगा कि उनके बैगेज के साथ साथ एक जिंदा बम भी इस सफर में उनका हमसफर था...यकीनन सुरक्षा में इस तरह की चूक करने वालों का जुर्म उन आंतकियों से किसी मायने में कम नहीं है जो जगह जगह धमाके कर मासूमों की जान लेने में अपना फख्र समझते हैं , अगर ये साबित हो जाए कि किसी सेक्योरिटी स्टाफ ने जानबूझकर प्लेन में बम रखने वाले का साथ दिया। ये बात बार बार जेहन में इसलिए आती है क्योंकि बिना किसी स्टाफ के मिले ऐसा कैसे संभव हो सकता है
जब भी हम किसी हवाई यात्रा के लिए एअरपोर्ट पर जाते हैं तो प्लेन में चढ़ने से पहले यात्रियों और उनके सामान की दो बार स्क्रीनिंग की जाती है । एयरपोर्ट में दाखिल होते ही यात्रियों और उनके सामान को मेटल डिटेक्टर और स्कैनर से जांचा जाता है ये काम अममून प्राइवेट एअरलाइंस के सेक्योरिटी स्टाफ का होता है , दूसरे चरण में सीआईएसएफ के जवान यात्री की पूरी तलाशी लेते हैं...यात्री के हैंड बैगेज की एक्सरे जांच होती है...किसने क्या किया और क्यों किया ये जांच का विषय हो सकता है लेकिन इतना तो तय है कि चूक इन दोनों से हुई है और कोई भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता । दरअसल मानिए या न मानिए अब वक्त आ गया है कि विदेशी एअरपोर्ट्स पर अपने वीवीआईपीज़ की सुरक्षा जांच से बिलबिलाकर बयानबाजी करने की बजाय हम अपनी गिरेबान में झांक कर देखें और अपनी खामियों पर पर्दा डालने की बजाए उन्हें जड़ से खत्म करने की सोचे ताकि फिर कभी कोई देश की सुरक्षा से इतना बड़ा खिलवाड़ करने की जुर्रत न कर पाए , ताकि इस देश के अंदर हम खुद को सुरक्षित महसूस कर पाएं और मेरे जैसा पत्रकार कभी ये न कह पाए कि चाहे जो कुछ हो जाए हम नहीं सुधरेंगे ।
5 comments:
ओह इसी वायु सेवा से मुझे भी निलकना है -सुनकर सचमुच रूंह काँप गयी -आसमान में धमाका !
sach kaha aapne....
आप कि बात सौ टके सही है .......अब सवाल ये है कि हम कैसे सुधरेंगे ?
सच कह रहे हैं आप ,हम नहीं सुधरेंग लेकिन कब तक ऐसा चलेगा .
कभी न कभी तो हमें सुधरना है तो कब ,न जाने वह दिन कब आएगा .
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
sir ji ye word verification to hata dijiye .
विकास पाण्डेय
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