Tuesday 12 January 2010

दिल्ली की सर्दी और खाक होती जिंदगी

भई दिल्ली में तो हाड़ कंपाने वाली ठंड़ पड़ रही है, सुबह उठना दूभर....नहाना दूभर....घर से गाड़ी तक आना दूभर....सर्द हवाएं शरीर में सुई की तरह चुभती हैं....कितना भी पहन ओढ़ कर क्यों न निकलो...ठंड, शरीर से आर पार हो ही जाती है....पता नहीं कब तक ये कोहरा परेशानी का सबब बना रहेगा...हम और आप आजकल कुछ ऐसी ही बातें करते अपने दफ्तर की सीढियां चढ़ते हैं.....और फिर एसी ऑफिस की गर्मी में ठंड भुलाकर, चाय की चुस्कियां लेते हुए काम शुरू करते हैं....घर लौटते वक्त फिर ठंड का अहसास होता है तो कुदरत को कोसते हुए रास्ता तय होता है और बस......एक बार घर पहुंच गए तो आनंद ही आनंद......लेकिन कुछ रोज पहले कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद अब ठंड ज्यादा नहीं लगती .... बार बार ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करने को जी चाहता है....उस रोज....दिल्ली में हल्की बारिश हुई थी....ठंड और बढ़ चुकी थी.....ऑफिस से घर जाते वक्त ड्राइवर साहब को गाड़ी तेज भगाने की हिदायत दी....लेकिन न चाहते हुए भी उन्हें एक रेड लाइट पर ब्रेक लगाना ही पड़ा.....ब्रेक लगा तो चंद लम्हों बाद ही नजर आया....एक परिवार.....बेहद मैले कुचैले फटे हुए छोटे से कपड़ों में दो बच्चे, और अपनी आगोश में लेकर ....उन्हें किसी तरह ठंड से बचाने की नाकाम कोशिश करती उनकी मां....रेड लाइट मीटर 25, 24, 23 करता हुआ ग्रीन होने की जि़द कर रहा था और एक एक सेंकेंड किसी पर कितने भारी पड़ सकते हैं , हर पल मुझे इस बात का अहसास हो रहा था.....यकीन जानिए उन 20-25 सेंकेंड्स ने मुझे अंदर तक हिला दिया....रोम रोम में सिहरन सी दौड़ गई....

इसके आगे कुछ सोच पाता, कि ड्राइवर ने .... फर्स्ट गेयर लगाया...मैने देखा रेड लाइट ग्रीन हो चुकी थी.....फिर नजर फुटपाथ की तरफ गई..... ठंड से बचने की कोशिश करती वो जिंदगियां नजरों से ओझल हो चुकी थीं.....उनके लिए कुछ नहीं कर पाया.....क्योंकि उन चंद पलों में दिल के अंदर मचे तूफान की वजह से कुछ सोच ही नहीं पाया.....लेकिन ये ग़म चंद गरीबों का नहीं है.....आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि देश के दिल दिल्ली में ...एक दो नहीं.... पूरे दस लाख लोग फुटपाथ पर रहकर इन सर्द हवाओं के थपेड़े झेलने को मजबूर हैं....हो सकता है इनमें से कुछ अगली ठंड झेलने के लिए बचें भी ना...पर ये बात तय है कि उनकी जगह जल्द ही भर जाएगी....जानना चाहेंगे क्यों....क्योंकि दिल्ली जैसे अत्याधुनिक शहर में कामयाबी की निशानी के तौर पर मेट्रो की रफ्तार नजर आती है...एक से बढ़कर एक शानदार ओवरब्रिज तो नजर आते हैं....कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर अरबों रूपये बहते भी नजर आते हैं....लेकिन ऐसे गरीब और बेसहारा लोगों के लिए नाइट शेल्टर्स यानि रैन बसेरे नजर नहीं आते.....तभी तो लाखों बीमार सड़कों पर रहते हैं और जिस एक को अनार बन चुके इन रैन बसेरों में जगह मिल जाती है वो अपने आप को खुशकिस्मत समझता है.....दरअसल पूरी दिल्ली में सिर्फ 10 रैन बसेरे हैं.... जिसमें से कोई भी महिलाओं के लिए नहीं है....जी हां दिल्ली ....जहां एक महिला मुख्यमंत्री पिछले 11 सालों से सत्ता पर काबिज हैं , वो दिल्ली जो देश के बाकी राज्यों के लिए विकास के मामले में एक नजीर की तरह पेश होती है......वहां महिलाओं के लिए एक भी नाइट शेल्टर नहीं है......

शायद शीला मैडम को अपनी एसी अंबैस्डर से दिल्ली की चमचमाती सड़कों पर रात बिताते ये लोग नजर नहीं आते....या मैडम उन्हें देख कर मुंह फेर लेती हैं.....या फिर मन ही मन ये सोच कर आगे बढ़ जाती हैं ...कि बस एक यही हैं...जिन्होंनें दिल्ली को दागदार कर रखा है ...आखिर क्या सोंचेगें कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान दिल्ली आए हमारे विदेशी मेहमान......काश, शीला दीक्षित ने सोचा होता कि अगर सिर पर एक अदद छत न हो.....तन ढकने को कपड़े न हों....तो दिन भर में कितनी बार इन महिलाओं का सामना इंसान के भेस में घूम रहे भेडियों से होता होगा....शायद सोचा होता कि हर साल ठंड आते ही सैकडों लोग हमेशा हमेशा के लिए काल के गाल में क्यों समा जाते हैं.....शायद सोचा होता दिल्ली की उन हजारों बेघर महिलाओं के ग़म के बारे में..... जिनके सिर पर छत तो दूर की बात है.....जिन्हें जिंदगी गुजारने के लिए पीने का साफ पानी और बुनियादी जरूरतें तक मयस्सर नहीं हैं। लेकिन नहीं......दिल्ली सरकार ने उनके बारे में सोचकर अपना कीमती वक्त जाया नहीं किया...तभी तो जब कुछ दिनों पहले एक रिपोर्टर ने मैडम से इन रैन बसेरों के बारे में जानने की कोशिश की तो सीएम साहिबा ने एक गलत जानकारी देते हुए...इस मसले पर बात करने से ही इंकार कर दिया....मैडम बोलीं कि नहीं ऐसी बेसहारा महिलाओं के लिए निर्मल छाया स्कीम चल तो रही है। जबकि निर्मल छाया अपराधी महिलाओं के लिए जेल है न कि बेघर महिलाओं का कोई सहारा.....

मैडम दीक्षित....बहुत तारीफें सुनी हैं आपकी.....खुद लोगों से की भी हैं.....मानता हूं कि इन 11 सालों में आपने दिल्ली को बहुत कुछ दिया है.....मानता हूं कि ये काम अकेले आपका नहीं है एमसीडी की सत्ता पर पांव जमाए बैठे बीजेपी के नेताओं की भी जिम्मेदारी बनती है.....पर अब तो एमसीडी में भी चलती आपकी ही है...किसी की क्या मजाल जो आपका कहा न माने....इसीलए अफसोस होता है....आज आपके इस विकास पर शर्म आती है...क्या यही है विकास....जो गरीबी, नहीं गरीबों को हटाए...उम्मीद करता हूं कि अगली बार आप सड़क पर निकलेंगी तो ये गरीब भी आपको नजर आएंगे...और इनकी मजबूरी भी...और फिर जब कोई रिपोर्टर आपसे इन गरीबों की हालत के बारे में सवाल पूछेगा तो आपको बगलें झांकने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी...

2 comments:

संगीता पुरी said...

दूसरों की तकलीफ को देखने की फुर्सत किसे है ??

Udan Tashtari said...

बस दुआ ही किजिये,...बहुत उम्मीद मत रखियेगा!