Sunday 6 June 2010

प्रकाश झा की मजबूर'नीति'

राजनीति किस हद तक गंदी हो सकती है, राजनीति कैसे रंग बदल सकती है...और राजनीति कैसे एक भरे पूरे परिवार को नफरत और बदले की आग में अंगार बना सकती है....ये सब कुछ देखने को मिला प्रकाश झा की राजनीति में। हमारे देश की स्टेट पॉलिटिक्स का खाका खींचने की कोशिश में झा बहुत हद तक कामयाब रहे हैं....गंगाजल और अपहरण जैसी फिल्मों के जरिए जबरदस्त फैन फालोइंग बटोरने वाले प्रकाश झा ने इस फिल्म के बाद अपना लोहा मनवाने वालों की फेहरिस्त में और इजाफा कर दिया है। इस वीकएंड फिल्म देखकर निकला तो मन में यही ख्याल आया कि महाभारत के किरदारों की माला में आज के राजनेताओं को पिरोने का ये काम बखूबी अंजाम दिया है डायरेक्टर ने...बड़ा कैनवास, बड़ा बजट और सितारों की लंबी चौड़ी फौज....और नाना से लेकर रणबीर तक सबकी शानदार अदाकारी....मानो एक एक एक्टर इसी रोल के लिए बना हो....सिवाय एक के...

समझ नहीं पाया कि आखिर क्या मजबूरी रही होगी प्रकाश झा जैसे दिग्गज डायरेक्टर के सामने कि वो फिल्म में एक भी लाईन हिंदी में ढंग से न बोल पाने वाली कटरीना कैफ को लेने पर मजबर हुए.....वो कटरीना जो इस मजबूत फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुईं....जिन्होंनें अपनी अल्हड़ अदाकारी से ये जता दिया कि इतनी फिल्में करने और बॉलीवुड की नंबर वन हिरोइन का तमगा हासिल करने के बाद भी उन्हें अदाकारी की कितनी समझ है...कटरीना ने इस फिल्म के जरिए उन्हें फिल्में हिट कराने का सबसे कामयाब फार्मूला मानने वाले फिल्मकारों को ये भी बता दिया है कि सीरियस रोल्स में उन्हें लेने की भूल न ही करें तो अच्छा...दो चार गाने , दो चार डांस और फिल्मों में ग्लैमर का तड़का लगाने के लिए ही उनका इस्तेमाल किया जाए तो अच्छा ..... जैसा वो अबतक करती आईं हैं....क्योंकि राजनीति में कटरीना जब जब नजर आईं उन्होंनें अपने नाकाबिलियत से दर्शकों को इस बात का ही अहसास कराया कि आप ये सोंचने की भूल न करें कि ये रिएलिटी है...हम लोग ड्रामा कर रहे हैं...तीन घंटे का ड्रामा देखिए और खुशी खुशी घर जाइए....

हिंदी में कटरीना के डायलॉग्स की डबिंग खुद उनसे कराने में प्रकाश झा इतना फख्र क्यों महसूस कर रहे थे , फिल्म देखने के बाद कम से कम मैं तो समझ नहीं पाया...क्योंकि मेरे हिसाब से ये उनके कद के डायरेक्टर की सबसे बड़ी भूल थी , अफसोस प्रकाश झा के चुनाव पर नहीं वक्त पर भी होता है..प्रकाश झा भी क्या करें...बॉलीवुड का ये वो दौर है जिसमें उम्दा अभिनेत्रियों का अकाल पड़ा हुआ है, विदेशों से अभिनेत्रियां इम्पोर्ट की जा रही हैं और यहां लाकर उन्हें स्टार बनाया जा रहा है...तभी तो राकेश रोशन जैसे दिग्गज मैक्सिकन ब्यूटी बारबरा मोरी और इम्तियाज अली गिजे़ल मोंटारियो की अदाकारी पर यहां की अदाकाराओं से ज्यादा भरोसा करते हैं..मिस श्रीलंका जैक्कलीन फर्नाडिंस एक साथ कई फिल्मों में नजर आती हैं..... आप इसे बॉलीवुड का ग्लोबलाइजेशन भी कह सकते हैं पर एक नजर अपने बॉलीवुड पर डालेंगे तो तस्वीर बहुत हद तक साफ हो जाएगी....जरा एक नजर दौड़ाइये और सोचिए आज के दौर में कौन है ऐसी अभिनेत्री जिसमें माधुरी दीक्षित की संजीदगी भी नजर आए और श्रीदेवी का चुलबुलापन भी । जो हर तरह के किरदार में ढलने का माद्दा रखती हो, जो वाकई में अपने दम पर फिल्में चलवाने का दमखम रखती हो....कटरीना से लेकर करीना तक.....और दीपिका से लेकर सोनम कपूर नए दौर की नायिकाओं में सबका ध्यान अभिनय की बारीकियां सीखने में कम, अपने बोल्ड लुक से दर्शकों को चौंकाने और साइज जीरो पर ज्यादा है......देखिए कब खत्म होता है नाकाबिल अभिनेत्रियों की मौज का ये दौर.... कब मिलती है हिंदी सिनेमा को दूसरी माधुरी ...और कब तक चलती है प्रकाश झा जैसे फिल्मकारों की मजबूर नीति।

1 comment:

Anonymous said...

How can U forget Gracy Singh, she is a beauty which can give run for money to all the actresses in bollywood currently if acting is criteria, but the problem is no one wants acting, everyone is behind bodyshow. Prakash was obsessed to rope a foriegn bala to counter sonia, else gracy was the best choice for the film.