Monday 26 July 2010

बीजेपी का 'शाह' तिलक

तीन दिनों से फरार अमित शाह जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में अचानक प्रकट हुए तो लगा कि नेता जी पूरी तैयारी के साथ आए होंगे मीडिया के सवालों का जवाब देने। पर अफसोस थोथा चना बाजे घना वाली कहावत याद आ गई शाह के मुंह से निकली अमृत वाणी सुनकर। एक रिपोर्टर ने उनके और एनकाउंटर करने वाले पुलिस वालों के बीच की बातचीत के ब्यौरे पर सवाल दागा कि क्या कहेंगे शाह साहब आप अपनी सफाई में । सवाल पूछने पर मोदी का ये खासमखास नेता बोल पड़ा कि आपकी मुझसे बात हो रही है , अब अगर मै हत्या कर दूं तो आप दोषी हो जाएंगी। शाह ने समझा मैने सही निशाने पर तीर मारा है, अंदर ही अंदर खुशी उबाल मार रही थी कि एक पत्रकार ने सवाल दाग कर उनकी खुशी वापस हलक में अटका दी, सवाल बहुत छोटा था लेकिन तीर की तरह निशाने पर लगा। पत्रकार ने पूछा, मतलब हत्या आपने नहीं उन पुलिस अफसरों ने की । शाह को मानों काटो तो खून नहीं, क्या बोलें क्या न बोलें। चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था मानों किसी ने चोरी पकड़ ली हो। कुछ समझ नहीं आया , बात तो पते की थी कुछ बोला न गया सो कुछ देर सोचने के बाद बेशर्मी भरी मुस्कान चेहरे पर तैर गई। मन में उमड़ रहे झुंझलाहट के तूफान को संभालते हुए नेता जी उस पत्रकार से बोले आप सीबीआई में शामिल हो जाइए । बात खत्म हो गई औऱ शाह की जान में जान आई। जाहिर है कांग्रेस को गरियाने औऱ तोहमत लगाने के अलावा अमित शाह के पास मीडिया को बताने के लिए कुछ भी ऐसा नही था जो उन्हें बेकसूर साबित कर सके।

शाह ने जो किया सो किया, मार्बल लॉबी को परेशान करने वाले एक गैंगस्टर सोहराबुद्दीन का फर्जी एनकाउंटर फिर उसकी बेकसूर बीवी की जहर का इंजेक्शन देकर हत्या और फिर सोहराबुद्दीन के राइट हैंड तुलसी प्रजापति का फर्जी एनकाउंटर । इन तमाम आरोपों की सफाई अब उन्हें अदालत में देनी होगी। पर सवाल ये नहीं है कि जेल की सलाखों के पीछे भेजा जा चुका हत्या का एक आरोपी मंत्री बचेगा या नपेगा ? सवाल तो ये है कि देश के मुख्य विपक्षी दल बीजेपी को क्या हो गया है आखिर हत्या अपहरण और जबरन वसूली जैसे संगीन आरोपों से सने एक शख्स की भरी मीडिया के सामने आरती उतारकर उसकी जयजय कार करके वो साबित क्या करना चाहती है। आखिर ये स्वागत और नारेबाजी किसलिए, क्या अमित शाह कोई जंग जिताउ योद्धा बनकर पार्टी दफ्तर आए थे। या फिर उन्होंने कुछ ऐसा काम किया था जिससे गुजरात की अस्मिता में चार चांद लग गए ।

कहीं ऐसा तो नही कि नरेन्द्र मोदी को सिर आंखों पर बैठाने वाली बीजेपी को सोहराबुद्दीन के खून से रंगे हाथों में नया हिंदू ह्रदय सम्राट नजर आ रहा है । शायद ऐसा ही है तभी तो गुजरात में पार्टी के आला नेतृत्व से लेकर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने आडवाणी के घर मीटिंग के बाद उस वक्त फरार चल रहे अमित शाह के सिर पर हाथ रख दिया। किसी ने एक बार ये नहीं कहा कि कानूनी प्रक्रिया का पूरा सम्मान करते हुए शाह जांच में मदद करेंगे। उल्टे ये दावा किया गया कि केंद्र की कांग्रेस सरकार सीबीआई जांच के बहाने शाह पर निशाना साधकर गुजरात में बीजेपी को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है। लेकिन शायद ये दावा करते हुए बीजेपी ये भूल गई कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर की जांच का जिम्मा केंद्र सरकार ने नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौंपा था। क्या बीजेपी का भरोसा देश की न्यायिक व्यवस्था से भी उठ गया है ? अचानक उसके लिए अमित शाह इतने खास कैसे हो गए कि इतने गंभीर और संगीन आरोपों के तले दबे एक नेता को बचाने के लिए पार्टी ने अपनी इज्जत दांव पर लगा दी। या तो बीजेपी के नेताओं को ये लगता है कि फर्जी एनकाउंटर के एक आरोपी का साथ देकर पार्टी देश के लोगों के बीच बेहतर छवि बना पाने में कामयाब होगी या फिर मोदी का कद पार्टी से भी बड़ा हो चुका है। और अब बीजेपी में वही होगा जो मोदी चाहेंगे। देखिए बीजेपी में मोदी मार्का राजनीति का ये दौर कब तक चलता है और पार्टी को इसका कितना खामियाजा भुगतना पड़ता है