Monday 14 January 2013

जंग की राजनीति

दो मुंडी के बदले दस मुंडी, उन्होंने दो किए हम दस सिर कलम करेंगे। ये किसी तालिबानी नेता का नहीं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुख्य विपक्षी दल के नेताओं का ऐसा बड़बोलापन है जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। ऐसा लग रहा है जैसे बड़े नेता नहीं कक्षा 6 या 7 में पढ़ने वाला कोई झगड़ालू लड़का देश की बड़ी समस्या पर अपनी राय देश के सामने रख रहा हो। समझ में ये नहीं आता कि हमारे नेता ऐसे मुश्किल और संवेदनशील दौर में ऐसे असंवेदनशील और गैरजिम्मेदार बयान भला कैसे दे सकते हैं

हैरत उस वक्त और भी ज्यादा होती है जब देश के कुछ नंबर वन कहे जाने वाले अंग्रेजी दां चैनलों के बेहद सभ्य माने जाने वाले अंग्रेजी पत्रकार अपने प्रोफेशन की मर्यादा लांघते हुए ऐसी उत्तेजना में एंकरिंग नहीं बल्कि भाषणबाजी करने लगते हैं जैसे कल ही दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ने वाला हो और हालात इतने बदतर हो गए हों कि अब बस एक दूसरे को मरने मारने के अलावा , कोई रास्ता न बचा हो।

जाहिर है हमारे जांबाज सैनिकों के शवों पर अपनी नामर्दी के सबूत छोड़कर पाकिस्तान ने एक बेहद क्रूर , बर्बर और नाकाबिले बर्दाशत कदम उठाया है , एक बड़ी हिमाकत की है लेकिन आज इस हिमाकत का इमोशनली नहीं डिप्लोमैटिकली जवाब देने का वक्त है। भावनाओं के ज्वार को ठंडा रखते हुए,  दोनों ओर के बेकसूर जवानों की कीमती जानों को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिए जाने की जरूरत है जिसमें हमारे जनरल बहुत हद तक कामयाब रहे हैं।

उम्मीद की जानी चाहिए की पड़ोसी मुल्क के खिलाफ देश के लोगों में नफरत भरने या शहीद के घरवालों से मिलकर दूसरे दलों के नेताओं पर कीचड़ उछालने की राजनीति बंद होगी और देश के नेता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएंगे और सरकार भी विपक्ष को भरोसे में लेकर सख्त ही नहीं एक ठोस मैसेद देगी।